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Poetry on Ishq/Mohabbat/pyar

इस कद्र यह रूह तड़पी तुझ को एसे देखकर
दिल उतर कर आ गया बस तेरे चेहरा-ए-नूर पर


तेरी ज़ुलफें यूँ हैं स्याह जैसे तारीखी रात की
और तबस्सुम जो निगल ले दर्द का अंबार भी


आ गयी तेरी यूँ चाहत तड़प कर मैं रह गया
सर पर मेरे और तुम्हारे इश्क का मद चढ़ गया



आ गये हम इस कद़र कुर्बत में होकर बेखबर
हो गया सब बे-अस्ल जब खुल गयी "फैजान" की चश्म


Written by
Raza M Faizan

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