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Showing posts from January, 2019

Poetry in Hindi / Kavita

रोते हैं पेड़-पौधे भी जब पत्ते सूख जाते हैं समाँ कितनी भी अच्छी हो समय से लोप जाती है | इशारे बहुत होते हैं बताने के लिये बहुधा बहुत कम ही होता है कि यह भी चूक जाते हैं तारे टिमटिमा के रात में हर क्षण यह कहते हैं कि दुख की हर साया को एक स्मित तोड़ सकती है जल की छींट जब पड़ती है शुष्क धरती के आँचल पर एसे खुश्क मंजर पर मरहम यह भी बनती हैं ©Raza M Faizan Author of the blog

Poetry on Ishq/Mohabbat/pyar

इस कद्र यह रूह तड़पी तुझ को एसे देखकर दिल उतर कर आ गया बस तेरे चेहरा-ए-नूर पर तेरी ज़ुलफें यूँ हैं स्याह जैसे तारीखी रात की और तबस्सुम जो निगल ले दर्द का अंबार भी आ गयी तेरी यूँ चाहत तड़प कर मैं रह गया सर पर मेरे और तुम्हारे इश्क का मद चढ़ गया आ गये हम इस कद़र कुर्बत में होकर बेखबर हो गया सब बे-अस्ल जब खुल गयी "फैजान" की चश्म Written by Raza M Faizan