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Poetry in Hindi / Kavita

रोते हैं पेड़-पौधे भी
जब पत्ते सूख जाते हैं
समाँ कितनी भी अच्छी हो
समय से लोप जाती है |



इशारे बहुत होते हैं
बताने के लिये बहुधा
बहुत कम ही होता है
कि यह भी चूक जाते हैं


तारे टिमटिमा के रात में
हर क्षण यह कहते हैं
कि दुख की हर साया को
एक स्मित तोड़ सकती है



जल की छींट जब पड़ती है
शुष्क धरती के आँचल पर
एसे खुश्क मंजर पर
मरहम यह भी बनती हैं


©Raza M Faizan
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आ गयी नये साल की रात आयी मुझको तेरी याद न आया तुझको मेरा ख्याल मैने सोची तेरी हर बात वो साथ बिताये हर एक काल - ये चाहत मार डालेगी - - पागलपन जान ले लेगी- क्यूं न आयी तुझको मेरी याद क्या थाम लिया तेरा किसी और ने हाथ कि फिर आयी तुझ पर भरोसे की बात एक बार करले तू मुझसे बात ये बेचैनी रहेगी हर बार -ये चाहत मार डालेगी - - पागलपन जान ले लेगी - यही सब सोच रहा था 'फैज़ान' कि तब तक आ गयी तेरी कॉल फिर दिल को हो गया मेरे आराम न आयेगी फिर तुझ पर शक की बात करता हूँ इसी से नये साल का आग़ाज़ -ये चाहत मार डालेगी - - पागलपन जान ले लगी- Written by Raza M Faizan Author of the Blog Written on 1st of Jan 2019