रोते हैं पेड़-पौधे भी जब पत्ते सूख जाते हैं समाँ कितनी भी अच्छी हो समय से लोप जाती है | इशारे बहुत होते हैं बताने के लिये बहुधा बहुत कम ही होता है कि यह भी चूक जाते हैं तारे टिमटिमा के रात में हर क्षण यह कहते हैं कि दुख की हर साया को एक स्मित तोड़ सकती है जल की छींट जब पड़ती है शुष्क धरती के आँचल पर एसे खुश्क मंजर पर मरहम यह भी बनती हैं ©Raza M Faizan Author of the blog